Friday, December 25, 2015

Antardwand - अंतरद्वन्द


जीवन मृत सा प्रतीत हो रहा
कम पड़ रहें श्वास हैं
करुणा से आखें भर आईं
छूट रहा विश्वास है

इच्छाओँ का पतन हो रहा
संघर्ष लगता व्यर्थ है
ह्रदय को ऐसी मार लगी के
चारों तरफ अनर्थ है

जिनके स्वप्नों ने जीवन को
जीने का इक अर्थ दिया
जिनके ना होनें ने इतनी
कविताओं को जन्म दिया
आज उन्हीं को समक्ष पाकर
डर डर श्वास ये आतें हैं
प्रेम रस तो मिथ्या हो गई
कविता कड़वी गाठें हैं

साहस दुस्साहस के
असमंजस को कैसे पार करूँ
जिनसे लड़ना है वो अपने हैं

कैसे जीवन का उद्धार करूँ!!

Note: कभी आप ने अपने आप को ऐसी अवस्था में पाया, जब आप अपने आपसे ऐसी लड़ाई में उलझे हों की कुछ समझ में न आये, आप का अनुभव कैसा था?