Wednesday, June 5, 2013

इब्तदा न कोई इसकी न कोई इम्तहा है!!

वुसुअत--आफाक1 जेहेन--इंसानी2 के बस की बात नहीं
विज्ञान के परे का ज्ञान इसे समझ में नहीं आता,

दिल के अन्दर झाँकने की रही इसकी कोई औकात नहीं
खुदा है क्या! ये सवाल सदियों से  विज्ञान को सताता,

तर्क वितर्क से खोजना चाहे ये सवालों के जवाब
कि हर सवाल में ही जवाब है, ये इसकी समझ में नहीं आता,

सराबों3 कि जुस्तजू में फ़िर्क--माश4 घूमता है ये
जिन्दगी इक सफ़र है मंजिल नहीं,
इब्तदा कोई इसकी कोई इम्तहा है ।।

वुसुअत--आफाक1 = अंतरिक्ष या ब्रम्हांड का विस्तार | जेहेन--इंसानी2 = मानव का मस्तिष्क | सराबों= मृगतृष्णा | फ़िर्क--माश4 = आजीविका की चिंता |

1 comment:

  1. Nice attempt, Hemant. Though, I would say that the meters need to be corrected.

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